कविता संग्रह >> आज की मधुशाला आज की मधुशालाडॉ. संंजीव कुमार
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आज की मधुशाला
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अंगूरों से भाव कहाँ हैं,
कहाँ मदिर साकी हाला।
सूखे तपते होंठ, तड़पता जिगर,
भटकती मधुशाला॥
कहाँ पिलाता अपने हाथों
प्रियतम को कोई प्याला।
अपना अपना भोग लगाते,
बिखरी-बिखरी मधुशाला॥
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